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वि॒दद्यदी॑ स॒रमा॑ रु॒ग्णमद्रे॒र्महि॒ पाथः॑ पू॒र्व्यं स॒ध्र्य॑क्कः। अग्रं॑ नयत्सु॒पद्यक्ष॑राणा॒मच्छा॒ रवं॑ प्रथ॒मा जा॑न॒ती गा॑त्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vidad yadī saramā rugṇam adrer mahi pāthaḥ pūrvyaṁ sadhryak kaḥ | agraṁ nayat supady akṣarāṇām acchā ravam prathamā jānatī gāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒दत्। यदि॑। स॒रमा॑। रु॒ग्णम्। अद्रेः॑। महि॑। पाथः॑। पू॒र्व्यम्। स॒ध्र्य॑क्। क॒रिति॑ कः। अग्र॑म्। न॒य॒त्। सु॒ऽपदी॑। अक्ष॑राणाम्। अच्छ॑। रव॑म्। प्र॒थ॒मा। जा॒न॒ती। गा॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:31» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन स्त्री सुख देनेवाली होती है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे बुद्धिमती स्त्री ! (यदि) जो (सुपदी) उत्तम पादोंवाली आप (सरमा) चलनेवाले पदार्थों के नापनेवाली हुई (अद्रेः) मेघ के (सध्र्यक्) एक साथ प्रकट (पूर्व्यम्) प्राचीन जनों में किये गये (महि) बड़े (पाथः) अन्न वा जल को (विदत्) प्राप्त होवें (रुग्णम्) रोगों से घिरे हुए को औषध से रोगरहित (कः) करती (अक्षरणाम्) अक्षरों के (अग्रम्) श्रेष्ठ (रवम्) शब्द को (अच्छ) उत्तम प्रकार (नयत्) प्राप्त करती है (प्रथमा) पहिली (जानती) जानती हुई (गात्) प्राप्त होवे तो सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री बिजुली के सदृश विद्याओं में व्याप्त संस्कार और उपस्कार अर्थात् उद्योग आदि कर्म्मों में चतुर उत्तम रीति से बोलने तथा नम्र स्वभाव रखनेवाली होवे, वह सृष्टि के सदृश सुख देनेवाली होती है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

का स्त्री सुखदात्री भवतीत्याह।

अन्वय:

हे विदुषि स्त्रि यदि सुपदी भवती सरमा सत्यद्रेः सध्य्रक् पूर्व्यं महि पाथो विदद्रुग्णमौषधेन रोगं कोऽक्षराणामग्रं रवमच्छ नयत्प्रथमा जानती गात्तर्हि सर्वं सुखं प्राप्नुयात् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विदत्) लभेत (यदि)। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सरमा) या सरान् गतिमतः पदार्थान् मिनोति सा (रुग्णम्) रोगाविष्टम् (अद्रेः) मेघस्य (महि) महत् (पाथः) अन्नमुदकं वा (पूर्व्यम्) पूर्वैः कृतं निष्पादितम् (सध्र्यक्) यत्सहाञ्चति (कः) करोति (अग्रम्) (नयत्) नयति (सुपदी) शोभनाः पादा यस्याः सा सुपदी (अक्षराणाम्) वर्णानाम् (अच्छ) सम्यक्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (रवम्) शब्दम् (प्रथमा) आदिमा (जानती) (गात्) प्राप्नुयात् ॥६॥
भावार्थभाषाः - या स्त्री विद्युद्वद्व्याप्तविद्या संस्कारोपस्करादिकर्मसु विचक्षणा सुभाषिणी सरलस्वभावा स्यात्सा वृष्टिरिव सुखप्रदा भवति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी स्त्री विद्युतप्रमाणे विद्येमध्ये व्याप्त, संस्कार व उपसंस्कार अर्थात उद्योग इत्यादी कर्मात चतुर, वाक्चतुर तसेच नम्र स्वभावाची असते ती सुखवृष्टी करते. ॥ ६ ॥